लेखनी कहानी - मेडिकल कॉलेज का बरगद का पेड़ - 2 - डरावनी कहानियाँ
मेडिकल कॉलेज का बरगद का पेड़ - 2 - डरावनी कहानियाँ
मामा जी इस बात से थोडा परेशान हुए और बोले "अब क्या करें भईया? अब कैसे क्या होगा?"
"थोडा समय दो अभी बतातें हैं क्या करना है और क्या होगा।" उन्होंने खुद पर विश्वास रखते हुए मामा जी से कहा और वार्ड के दरवाज़े पर ही बैठ गए। आने जाने वाले उन्हें देख रहे थे। फिर एक नर्स आयीं और उन्होंने उनके बाहर बैठे रहने का कारण पूछा। उन्होंने बिना झिझक के जवाब दिया "अन्दर आज़ाद साहब बैठे हैं न और हम नौकर आदमी उनके बराबर बैठे अच्छा नहीं लगता।" नर्स ने उन्हें वेसे ही रहने दिया और दुबारा नहीं टोका।
थोड़ी देर तक उन्होंने अपना कुछ धीरे धीरे मंत्र जाप किया और फिर वहीँ बैठे रहे। मामा जी ने उनके पास जाकर पूछा "भईया क्या हुआ कुछ हल नज़र आया?"
"भईया ये शक्ति बहुत विकट है, साढ़े बारह बजे तक अगर ये लड़का बच गया तो फिर ये नहीं मरेगा अपने बुढ़ापे तक। अभी इस शक्ति से हम टक्कर नहीं ले सकते, ये इसका वक़्त चल रहा है जिसमे ये बहुत ज्यादा ताकत वार है। ये हमको अन्दर नहीं घुसने दे रहा है न, हम भी इसे बाहर नहीं निकले देंगे। हम भी यहीं डेरा जमाये रहेंगे देखे कितने खेल दिखता है।" इतना कह कर वो फिर से अपने किसी मंत्र को शांति से पढने लगे। और मामा जी वापस जाकर बैठ गए।
समय दस बज रहे थे अब सबको इंतज़ार था तो सिर्फ साढ़े बारह बजे तक के समय के कटने का। सब अपने अपने तरीके से भगवन से प्रार्थना कर रहे थे। और मन्नी चाचा बाहर वेसे ही बैठे थे कभी अपने थैले से कुछ निकल कर मंत्र पढ़ते तो कभी कोई वस्तु मंत्र पढ़ कर अन्दर वार्ड में फेंक देते।
बेचैनी और बेबसी की वजह से वो ढाई घंटे किसी ढाई दशक जैसे लग रहे थे। दादा जी को डॉक्टरों पर यकीन था मगर मामा जी को मन्नी चाचा पर। क्योकि मामा जी ये बात मान चुके थे के जब डॉक्टर भी परेशान हो जाएँ और सारी रिपोर्ट भी नार्मल हो तो तंत्र मंत्र का सहारा भी बहुत बड़ा योगदान देता है।
बाहर बैठे हुए मन्नी चाचा की बेचैनी देखि जा सकती थी कोई भी ज्ञाता ये देख कर जान सकता था की वहां बैठे आदमी की बैचैनी किसी आम इंसान की बैचैनी से अलग थी। ये बात वहां काम करने वाली एक दक्षिण भारतीय नर्स जान गयीं। वो वार्ड में जाते वक़्त मन्नी चाचा से बोली "अंकल, तुम यहाँ तंत्र मंत्र कर रहा है न हम को ये सब पता हैं।"
"बेटा, अब जान गयी हो तो दुबारा यहाँ मत आना क्योकि कुछ शक्तियां अनजान को माफ़ कर देतीं है। लेकिन जानकार के लिए खतरा बढ़ जाता है।" मन्नी चाचा ने आराम से नर्स को समझाते हुए सच्चाई से अवगत कराया।
वो नर्स ये बात सुनकर डर गयी और दुबारा उस जगह दिखाई नहीं पड़ी। मामाजी और मन्नी चाचा पर मानसिक दबाव बनता जा रहा था एक चूक या लापरवाही अगर होती तो दो दो जाने जाती एक जो पहले से गिरफ्त में थी और दूसरी जो उससे टक्कर ले रही थी।
किसी तरह से तो बारह बजे तक का समय कट गया मौसी जी और मौसा जी खाना लेकर अस्पताल आ चुके थे। लेकिन अब जेसे जेसे उसका प्रबल समय ख़त्म हो रहा था उस शक्ति ने अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया। भईया की सांसे ऊपर नीचे होने लगी ऑंखें पलट गयी, उनकी खुल आँखों में सिर्फ सफेदी नज़र आ रही थी आखों की पुतली दिखाई नहीं दे रही थी। हाथ पैर झटके खाने लगे थे। डॉक्टर को बुलाया गया जल्दी से जल्दी तीन चार डॉक्टर और प्रोफेसर अन्दर गए और बाकि सब को बाहर कर दिया गया।
डॉक्टर अपनी पूरी कोशिश में लगे थे और उधर मन्नी चाचा कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। उनके मंत्रोचारण लगातार चल रहे थे। मौसी जी को रो रो कर बुरा हाल हुआ जा रहा था। डॉक्टरों ने भईया के हाथ पैर पकडे हुए थे और एक डॉक्टर उनके सीने को लगता दबा रहा था अपना पूरा जोर लगा कर। तभी अचानक अन्दर से भईया के चिल्लाने की आवाज़ आई "मम्मी! मम्मी!"
ये सुन कर मौसी जी तुरंत वार्ड की तरफ दौड़ पड़ी। मगर मन्नी चाचा ने उन्हें अन्दर जाने से मना कर दिया। लेकिन पुरे चौबीस घंटे बाद भईया की आवाज़ आई थी इसलिए वो अन्दर जाने पर अमादा हो गयीं। मन्नी चाचा ने मामा जी से कह कर उन्हें वहीँ रोक दिए और समझाया के "अगर ये अन्दर चली गयीं, फिर ये लड़का तो बच जायेगा मगर हम इनको नहीं बचा पाएंगे। क्योंकि अन्दर से जो आवाज़ आ रही है वो छलावा है किसी और को अपना शिकार बनाने के लिए तुम्हारे परिवार से। तुम्हारा लड़का तो अभी भी बेहोश है।" मन्नी चाचा के लिए ये परीक्षा की घडी थी।
दूसरी तरफ डॉक्टरों को इस बात से थोड़ी सी आशा नज़र आई और वो अपने पूरे दिल जान से जो हो सकता था कर रहे थे। उन्हें लगा की अगर ये लड़का घर वालो को बुला रहा है तो ये ठीक होने की कगार पर है और इसे कोई मानसिक चोट भी नहीं है। थोड़ी देर तक उनका ये सारा ट्रीटमेंट चलता रहा उसके बाद भईया को आक्सीजन लगा कर बेहोशी में ही छोड़ कर सारे डॉक्टर बाहर आ गए। दादा जी से कहा के "अजय ने अपनी यादाश्त खोयी नहीं है इसका मतलब है के अब दुबारा होश आने तक शायद सब ठीक हो जायेगा। फिलहाल वो जितनी देर सोता है उसे सोने दे बिलकुल भी डिस्टर्ब न होने दें।"
दादा जी ने डॉक्टर का धन्यवाद किया। समय बारह बज कर पच्चीस मिनट हुए थे। अभी पांच मिनट तक मन्नी चाचा की परीक्षा और बाकी थी।
मन्नी चाचा ने किसी को भी ५ मिनट के लिए अन्दर जाने से रोक दिया। अपने थैले से कुछ राख(भस्म) निकली और अन्दर वार्ड में फेंक दी। फिर न जाने किससे वार्ड के अन्दर देखते हुए धीरे धीरे बात कर रहे थे जेसे की अन्दर कोई खड़ा हो। अगले पांच मिनट तक वो कुछ बात सी करते रहे उसके बाद जेसे ही साढ़े बारह बजे के आंकड़े को घडी ने छुआ, उन्होंने वार्ड के अन्दर लपक के कुछ पकड़ा जैसे के कोई साधारण इंसान परेशान करती हुयी मक्खी को पकड़ता है। उसके बाद अपने थैले से कुछ मैले धागे जेसा निकल और मंत्र पढ़ते हुए अपने हाथ पर बाँध लिया। और मामा जी से सबको लेकर अन्दर जाने को कहा और खुद बाहर चले गए और कह दिया के कोई भी मेरे पीछे न आये खासकर इस खानदान का। उन्होंने दादा जी की तरफ इशारा करते हुए कहा।
उनके ये बात सुनने के बाद सब सीधा वार्ड की तरफ दौड़ पड़े। अपने बेसुध बेटे को देखने के लिए। सबके दिल में अब एक आशा थी मगर किसी आशंका ने अभी भी सबके चेहरे के ऊपर छाया डाल रखी थी। सब बैठे सिर्फ भईया के होश में आने का इंतज़ार कर रहे थे।
वहां से निकलने के बाद मन्नी चाचा दुबारा लौट कर अस्पताल नहीं आये मगर उन्होने एक वार्ड के कर्मचारी से खबर भिजवा दी के
वो मामा जी से बाद में मिलेंगे।
शाम तक भईया को होश आ गया और वो एक दम नार्मल हो गए बस थोड़ी सी कमजोरी बता रहे थे। सबको पहचाना भी खाना भी आराम से खाया और जब उनसे ये पूछा गया के उन्हें हुआ किया था तो वो सिर्फ इतना ही कहते की में साइकिल से गिर गया था इसके आगे उन्हें कुछ याद नहीं था। फिर वो घर जाने की जिद करने लगे। शाम तक डॉक्टरों ने कुछ नहीं कहा मगर प्रोफेसर ने घर जाने की इज़ाज़त देदी और कहा की अगर इसे थोड़ी सी भी कोई परेशानी होती है तो इसे तुरंत हॉस्पिटल ले आयें। वरना सिर्फ नियमित चेकअप के लिए ५ दिन तक ले आयें। वेसा ही किया गया और भईया एक हफ्ते के अन्दर एक दम ठीक हो गए।
उधर जब मामा जी मन्नी चाचा के पास पहुंचे तो उन्होंने सारी बातें मामा जी से बताई जो इस प्रकार थी "मेडिकल के मैदान में एक बरगद का पेड़ है यही कोई ढाई सौ साल पुराना। जब ये दोनों भाई सुबह खेलने गए थे तो ये उसके नीचे भी बैठ कर खेले थे। जो उस बरगद पर वास करने वाली शक्ति को पसंद नहीं आया। और ये छोटा लड़का उसी की चपेट में आ गया। वेसे वो शक्ति चाहती तो दोनों को वहीँ पर ख़त्म कर सकती थी मगर दोनों बच्चे हैं इसलिए उसने सिर्फ परेशान किया सबको। इतना ही नहीं वो जिंदगी भर के लिए इसे परेशान करना चाहती थी उसका असर ये होता की ये अपने बुढ़ापे तक या फिर जब तक इसकी जिंदगी है तब तक उसी हाल में बेसुध पड़ा रहता जिन्दा लाश की तरह।"
मामा जी ने पहले अजरज से सुना और फिर एक प्रश्न किया "तो फिर मन्नी भईया इसे काबू कैसे किया?"
उन्होंने इसका भी उत्तर दिया "ये शक्ति यहाँ सब जगह पर घुमती है आज़ाद होकर। कोई इसे यहाँ से न हटा सकता है और न ही इसे पकड़ सकता है। पहले हमने वो उस वार्ड को बाँध दिया जिससे वो बाहर न आ सकी। फिर हमने उसको ये धमकी दी के अगर उसने इस बच्चे को नहीं छोड़ा तो फिर उसे इसी पेड़ पर बाँध देंगे। हमेशा रहना पड़ता उसे कैदी की तरह इसलिए उसने अपनी आज़ादी के लिए अजय को छोड़ दिया।"
मामा जी ने अगला सवाल पेश कर दिया "भईया वो शक्ति आखिर थी कौन सी?"
इस सवाल पर मन्नी चाचा मौन खिंच गए और मामा जी द्वारा बार बार प्रश्न करने पर सिर्फ इतना कहा के "आम इंसान के लिए उसका नाम लेना ठीक नहीं है उसने मुझसे वचन लिया है के मैं उसका अस्तित्व किसी को न बताऊ। मगर सिर्फ इतना जान लो के वो शक्ति बरम के आस पास की थी।"
ये सुन कर मामा जी का गला सुर्ख हो गया और उन्होंने आगे कोई प्रश्न नहीं किया। बस थोड़ी देर वहां रुके और वापस घर चले आये।
मुझे ये घटना मामा जी ने ही बताई थी।मैंने मन्नी चाचा की क्रियाओं के बारे में पुछा तो उन्होंने कहा के मन्नी चाचा ने कभी किसी साथ अपने राज़ नहीं बांटे इसलिए ये बात बताना मुश्किल है। जब मैंने उनसे पुछा के बरम क्या होते हैं तो उन्होंने मुझे सिर्फ इतना बताया के बरगद के पेड़ो का अस्तित्व इन बरम पर ही निर्भर करता है। इसलिए अगर कभी मेरा उस तरफ आना जाना हो तो उस बरगद के पेड़ की जय कर लू, एक शक्ति नहीं एक ढाई सौ साल का बुजुर्ग समझ कर।
आज भी अक्सर आते जाते मुझे वो पेड दिख जाता है तो सिर्फ "जय हो" के सिवा न कोई नाम और न ही कोई और शब्द मन में आता है।